GWALIOR: ग्वालियर में कांग्रेस के जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने से क्यों खींच लिया हाथ?

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Dev Shrimali
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GWALIOR: ग्वालियर में कांग्रेस के जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने से क्यों खींच लिया हाथ?


GWALIOR News. ग्वालियर में जिला पंचायत सदस्यों के निर्वाचन की घोषणा हो गई है। इस बार कांग्रेस ने इसके अध्यक्ष पद पर मुकाबले में कोई रुचि नहीं दिखाई यह चौंकाने वाली बात है जबकि तीन बार यहां काँग्रेस का अध्यक्ष रह चुके हैं । काँग्रेस की बेरुखी से अब यहां से बीजेपी का अध्यक्ष निर्विरोध चुना जाना तय हो गया है।



ये हुई सबसे बड़ी और सबसे छोटी जीत



हालांकि जिला पंचायत सदस्य के चुनाव पार्टी आधार पर नहीं हुए थे लेकिन चुनाव के दौरान ही सबको पता था कि इनमे से कौन किस दल का समर्थक है । हालांकि अनेक वार्डों में एक ही पार्टी के अनेक प्रत्याशी मैदान में थे। लेकिन इस बार बहुजन समाज पार्टी का वैसा दबदबा नजर नही आया जैसा पहले होता था । इस बार ग्वालियर जिले की तेरह सीट में से सिर्फ एक सदस्य ही बहुजन पार्टी का जीत सका । खास बात ये रही कि बसपा का भले ही सिर्फ एक सदस्य जीता हो लेकिन सबसे ज्यादा मतों से जीतने का सेहरा उसके ही सिर बंधा। जिले के वार्ड 8 से विजयी हुए आज़ाद सूर्यभान सिंह रावत ने अपने निकटवर्ती प्रतिद्वंद्वी को लगभग 6987 मतों के बड़े अंतर से हराया। रावत को लेकर पहले कांग्रेस और बीजेपी दोनो ने दावा किया कि वे उनके है लेकिन उन्होंने खुद बयान देकर स्थिति साफ की कि वे तो बीएसपी के हैं।     सबसे कम मतों से जीतकर जिला पंचायत सदस्य बनीं प्रियंका सतेंद्र सिंह । वे वार्ड एक से चुनाव लड़ीं और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी से 530 मतों के अंतर से जीतीं । प्रियंका या उनका परिवार किसी दल से नही जुड़ा बल्कि उन्होंने निर्दलीय जीत हासिल की।




अब तक तीन बार कांग्रेस तो दो बार बीजेपी का अध्यक्ष रह चुका है



ग्वालियर जिला पंचायत में अब तक कुल पांच बार निर्वाचन हुआ है । इनमे से तीन बार कांग्रेस तो दो बार बीजेपी के अध्यक्ष बने। यह चुनाव प्रक्रिया 1995 से शुरू हुई थी  और पहले अध्यक्ष बने अनुसूचित जाति के रामप्रसाद। इनके बाद सन 2000 में कांग्रेस नेता राम वरण सिंह गुर्जर अध्यक्ष बने। सिन्धिया परिवार के खास गुर्जर जिले की मुरार विधानसभा सीट से कांग्रेस के विधायक भी रहे।

लेकिन कांग्रेस अपना अध्यक्ष बनाने की हैट्रिक नहीं बना सकी । 2005 में यहां बीजेपी की श्रीमती धन्नो बाई अध्यक्ष बन गई। लेकिन 2010 में बाज़ी फिर पलट गई । इस बार अध्यक्ष पद फिर काँग्रेस के  में चला गया। पहले अध्यक्ष रह चुके रामवरण गुर्जर की पत्नी प्रेमा गुर्जर जिला पंचायत की अध्यक्ष बन गईं। लेकिन 2015 में फिर बदलाव हुआ और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के खास भुजवल यादव की पत्नी श्रीमती मनीषा यादव इस पद पर काबिज रहीं । अब अगर फिर बीजेपी का अध्यक्ष बना तो बीजेपी  भी काँग्रेस की तरह लगागार अपना दो बार अध्यक्ष बनाने के रिकॉर्ड की बराबरी कर लेगी।



कांग्रेस ने क्यों खींचा हाथ



जब मतगणना हुई तब कांग्रेस और बीजेपी दोनो के हाथ मे पांच - पांच जिला पंचायत सदस्य थे और बाकी तीन निर्दलीयों का समर्थन जुटाना था। लेकिन शुरू से ही कांग्रेस नेताओं ने अध्यक्ष बनाने में कोई रुचि प्रदर्शित नहीं की । इसकी बजह जब "द सूत्र"ने टटोली तो इसके चौंकाने वाले कारण समझ मे आये । नेताओं का कहना था पहले तो यह सीट अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित है । ये लोग गरीब है और जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव का खर्चा वहन  करने की उनकी सामर्थ्य नही होती है। चूंकि जिला पंचायत अध्यक्ष का पद सिर्फ रसूख बढ़ाता है उसके पास कोई पॉवर नही रहता सो उससे किसी को कोई आमदनी की भी उम्मीद नहीं रहती । सूत्र कहते हैं कि अध्यक्ष चुनने के लिए सभी सदस्य बीस से तीस लाख रुपये प्रति सदस्य मांगते है और पन्द्रह दिन तक घुमाने ,फिराने में भी बहुत पैसा खर्च होता है । राज्य में सरकार हो तो व्यवस्था हो भी जाती है अब जब विपक्ष में है तो ये पैसा कौन खर्च करे ? यही व जह है कि चुनाव के लिए कोई फाइनेंसर नही था और नेताओं ने अध्यक्ष पद की किसी जोड़तोड़ से अपना हाथ खींच लिया।



ओबीसी वार्ड में बीजेपी को झटका



ओबीसी वोटर लगातार बीजेपी से खिसक रहा है। चुनाव के पहले उसने अपने ओबीसी हितैषी बताने का खूब केम्पेन चलाया लेकिन जिला पंचायत के परिणामो ने बीजेपी को तगड़ा झटका दिया। ओबीसी के लिए दो सीटों में से एक मे भी बीजेपी को जीत नसीब नही  हुई। वार्ड 2 में भूपेंद्र गुर्जर तो वार्ड 12 में केशव बघेल जीते । दोनों ही कांग्रेस के हैं। पिछली बार जिले में ओबीसी के लिए तीन वार्ड आरक्षित थे लेकिन नए आरक्षण की प्रक्रिया में ये घटकर सिर्फ दो रह गए। खास बात ये एक को छोड़कर सामान्य की सभी सीट भी  ओबीसी ने जीत लीं।



ससुर की सीट पर बहू



ओबीसी एकता का नारा ऐसा चला कि सामान्य हो गई वार्ड 4 की सीट पर ओबीसी जीत गई। दरअसल इस सीट से पिछली बार कांग्रेस नेता पप्पन यादव जीते थे। इस बार यह सीट सामान्य महिला यानी अनारक्षित महिला के लिए हो गई। पप्पन ने इस पर अपनी बहू पिंकी शिवराज को  में उतार दिया । सभी सामान्य उम्मीदवारों को हराकर पिंकी यादव सवा दो हजार वोट से जीत गईं।



29 को होगा अध्यक्ष का चुनाव



अब चुनाव की आगे की प्रक्रिया घोषित कर दी गई है। सबके पहले 27 जुलाई को मुरार और भितरवार जनपद में अध्यक्ष का निर्वाचन होगा वहीं 28 जुलाई को घाटी गांव और डबरा के जनपद  अध्यक्ष चुने जाएंगे। जिला पंचायत अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया 29 जुलाई को


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